Thursday, June 23, 2011

दुनिया में बड़ा होना है तो छोटा होना आना चाहिए

जीवन में ज्ञान, कर्म और उपासना तीनों में से कोई भी मार्ग चुन लें, समस्याएं हर मार्ग पर आएंगी। लेकिन अच्छी बात यह है कि हर समस्या अपने साथ एक समाधान लेकर ही चलती है। समाधान ढूंढ़ने की भी एक नजर होती है।

सामान्यत: हमारी दृष्टि समस्या पर पड़ती है, उसके साथ आए समाधान पर नहीं। श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में जब हनुमानजी लंका की ओर उड़े तो सुरसा ने उन्हें खाने की बात कही। पहले तो हनुमानजी ने उनसे विनती की।

इस विनम्रता का अर्थ है शांत चित्त से, बिना आवेश में आए समस्या को समझ लेना। जब सुरसा नहीं मानी और उसने अपना मुंह फैलाया। जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।। सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।

उसने योजनभर (चार कोस में) मुंह फैलाया। तब हनुमानजी ने अपने शरीर को उससे दोगुना बढ़ा लिया। उसने सोलह योजन का मुख किया, हनुमानजी तुरंत ही बत्तीस योजन के हो गए। यह घटना बता रही है कि सुरसा बड़ी हुई तो हनुमानजी भी बड़े हुए।

हनुमानजी ने सोचा कि ये बड़ी, मैं बड़ा, इस चक्कर में तो कोई बड़ा नहीं हो पाएगा। दुनिया में बड़ा होना है तो छोटा होना आना चाहिए। छोटा होने का अर्थ है विनम्रता।

दुनिया जब भी जीती जाएगी, विनम्रता से जीती जाएगी। बड़ा होकर सिर्फ किसी को हराया ही जा सकता है। इसीलिए हनुमानजी ने छोटा रूप लिया और सुरसा के मुंह से बाहर आ गए।

Tuesday, June 7, 2011

बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोलें बोल

वेदांत का नियम है कि जो पत्थर दीवार पर लग सकता है, वह रास्ते में पड़ा नहीं रह सकता।

हम लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि मुझ में तो बहुत प्रतिभा है, पर कोई मेरी कद्र नहीं करता। मैं तो योग्य हूं, पर समाज में भ्रष्टाचार व्याप्त है, रिश्वत चलती है, मेरी प्रतिभा को समाज नहीं देखता आदि-आदि...। इस तरह के हम अनेक बहाने ढूंढ लेते हैं। पर ये बहाने हम अपनी कमियों को छुपाने के लिए करते हैं।

वास्तविकता यह है कि समाज जितना स्वार्थी होगा, लोग जितने अधिक मतलबी होंगे, नि:स्वार्थ व्यक्ति की कद्र उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी। स्वार्थी व्यक्ति भी नि:स्वार्थी से ही संबंध रखना चाहता है। अपने जीवन में देखें तो बात स्पष्ट हो जाएगी। हम दर्जी कैसा चाहते हैं? हम घर में काम करने वाली बाई कैसी चाहते हैं? हम डॉक्टर या चार्टर्ड अकाउंटेंट कैसा चाहते हैं -जो ईमानदार हो, स्वार्थरहित हो। हम स्वार्थी नौकर, दर्जी, डॉक्टर आदि कभी नहीं चाहते।

बड़े बड़ाई ना करें , बड़े न बोलें बोल।

रहिमन हीरा कब कहे , लाख टका मेरा मोल।।


यदि कोई व्यक्ति गुणी है तो लोग उसे अपने सिर - माथे पर स्थान देते हैं। इसलिए कभी भी आपके जीवन में निराशा के बादल छाएं तो कृपया दूसरों पर या भगवान पर दोष मत डालें। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं , एक ही व्यक्ति आपका मित्र है , एक ही व्यक्ति आपका शत्रु है - और वह हो आप स्वयं !

एक महल में एक कमरा था , जिसमें चारों तरफ दर्पण थे। एक राजकुमार उसमें घुसा और अपने आपको चारों तरफ से निहारा तथा चला गया। गलती से कमरे का दरवाजा खुला रह गया और एक कुत्ता उस दर्पण वाले कमरे में घुस गया। कुत्ते को चारों तरफ अनेक कुत्ते दिखे। कुत्ता भौंका तो सारे कुत्ते भौंका। कुत्ते ने छलांग मारी तो सारे कुत्तों ने छलांग मारी। इस आपाधापी में कुत्ता लहूलुहान होकर गिर पड़ा।

क्यों न अपने जीवन को हम उस राजकुमार की ही तरह जिएं , सोचिएगा इस बात पर।