धधक जाते हैं। धड़कनें तेज हो जाती हैं। ‘धिक्कार है’- मन के भीतर से निकलता है।
पहले वे थे- तो कहते थे, ‘सब्र का बांध टूटने वाला है,’ अब आप हैं, कहा था, अगली बार सहन नहीं करेंगे। वे हमें तोड़ गए किन्तु सब्र न छोड़ा। आप का ‘अगली बार’ आ गया, जीवन के शिखर पर सचमुच अवसर है, सहन मत कीजिएगा।
कई व्यवस्थाएं स्वत: कायर होती हैं। इर्द-गिर्द नाकारा घेरा हो तो नेतृत्व भी अकर्मण्य हो जाता है। कायरता, वीरता को धकेल देती है। किन्तु इतनी बड़ी सेना में कुछ तो योद्धा होंगे? उन्हें ईश्वर के लिए, देश के लिए, मत रोकिएगा।