Monday, December 19, 2011

सफलता सिर्फ जीतने में ही नहीं होती, कभी-कभी हारना भी पड़ता है

कई बार हम बाहरी सफलताएं हम पर हावी हो जाती हैं। कुछ सफलताएं पाने के बाद ऐसा भी महसूस होता है कि हमने अपना कुछ खो दिया है। सिर्फ भौतिक सफलताओं और संसाधनों पर टिकने वालों के साथ ऐसा ही होता है। हमें अपने भीतर की सफलता, यानी शांति और संतुष्टि के लिए भी सोचना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम हार कर भी संतुष्टि महसूस करते हैं।

भगवान कृष्ण के जीवन को देखिए। श्रेष्ठ अवतार और सर्वशक्तिमान होते हुए भी उन पर रणछोड़ होने का आक्षेप लगा। जो अवतार अपने एक चक्र से पूरी सेना के विनाश की शक्ति रखता हो, वो आखिर क्यों युद्ध का मैदान छोड़कर भागेगा। जरासंघ के सामने भी कृष्ण ने मैदान छोड़ा।

बलराम हर बार कृष्ण पर नाराज होते कि यादव वंश में आजतक कोई कायर नहीं हुआ, जो मैदान छोड़कर भाग जाए। युद्ध के लिए घर से सजधज कर निकले और युद्ध भूमि में आते ही पीठ दिखाकर भाग जाए।

कृष्ण बलराम के इस उलाहना को अक्सर हंस कर टाल जाते थे। वे कहते दाऊ हर बार जरूरी नहीं कि युद्ध जीता ही जाए। युद्ध का परिणाम सिर्फ जीतने या हारने तक सीमित नहीं होता है। इसका परिणाम तो इसके बाद की स्थिति पर निर्भर है। एक युद्ध में हजारों सैनिक मारे जाते हैं। उनसे जुड़े लाखों परिजन असहाय और दु:खी होते हैं। अगर सैनिकों की बलि चढ़ाकर जीत हासिल कर भी ली तो उसका लाभ ही क्या।

मैदान से भागने पर युद्ध टल जाता है, हजारों-लाखों जानें बच जाती हैं। अगर इसके लिए कोई आरोप या आक्षेप लगता है तो यह कोई घाटे का सौदा नही है। मैदान से भागने पर युद्ध टल जाता है, यह मेरे लिए शांति और संतुष्टि दोनों की बात है कि मेरे भागने से हजारों सैनिकों की जानें बच गई।

आपको ज्यादा सीधा-साधा नहीं होना चाहिए वरना हमेशा रहना पड़ेगा परेशा

जीवन में कई बार हमें हमारे स्वभाव के कारण या तो सुख प्राप्त होता है या दुख। आजकल जैसा वातावरण है उसके अनुसार जो सीधे-साधे लोग हैं उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस संबंध आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-

अतिहि सरल नहिं होइये, देखहु जा बनमाहिं।

तरु सीधे छेदत तिनहिं, बांके तरु रहि जाहि।।

जिन लोगों का स्वभाव अधिक सीधा-साधा है, उन्हें ऐसे नहीं रहना चाहिए क्योंकि यह अच्छा नहीं है। वन में हम देख सकते हैं जो पेड़ सीधे होते हैं सबसे पहले काटने के लिए उन्हें ही चुना जाता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिन लोगों का स्वभाव जरूरत से ज्यादा सीधा, सरल और सहज होता हैं उन्हें अक्सर समाज में परेशानियों का ही सामना करना पड़ता है। चालक और चतुर लोग इनके सीधे स्वभाव का गलत फायदा उठाते हैं। ऐसे लोगों को दुर्बल ही समझा जाता है। अनावश्यक रूप से लोगों की प्रताडऩा झेलना पड़ती है। अत्यधिक सीधा स्वभाव भी मूर्खता की श्रेणी में ही आता है। अत: व्यक्ति को थोड़ा चतुर और चालक भी होना चाहिए। ताकि वह जीवन में कुछ उल्लेखनीय कार्य कर सके। इसका एक सटीक और प्रत्यक्ष उदाहरण है जंगल में लगे सीधे वृक्ष। सामान्यत: देखा जा सकता है कि जंगल में लगे सीधे वृक्ष ही सबसे काटने के लिए चुने जाते हैं। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी जो लोग सीधे-साधे होते हैं उनसे चतुर लोग अनुचित लाभ अवश्य ही उठाते हैं।